मंगलवार, 24 मार्च 2009

क्या शिक्षा को आयुसीमा से बाँधा जाना उचित है?


पिछले साल भारत सरकार ने सभी बच्चों के लिये मुफ्त शिक्षा के अधिकार का विधेयक संसद में पेश किया था। इस विधेयक के अंतर्गत भारत में छ: से चौदह साल के सभी बच्चों को सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा के अधिकार की बात रखी गयी है। इस विधेयक को आप अंगरेजी में यहाँ पढ सकते हैं।

हाँलांकि यह विधेयक सही दिशा में उठाया कदम है, लेकिन इसमें ब्रिटिश राज की कुछ झलक अभी भी दिखायी देती है। इसका एक उदाहरण है शिक्षा के अधिकार को ६-१४ वर्ष की आयु तक सीमित रखना। वैसे मुझे मालूम है कि भारत एक बहुत ही बड़ा देश है और सरकार को सभी के लिये मुफ्त शिक्षा देना संभव नहीं है। लेकिन फिर भी जब "सर्वशिक्षा" की बात होती है तो ऐसी सीमायें बेतुकी सी लगती हैं।

ऐसी सीमायें प्रतिभावान बच्चों के लिये बहुत हानिकारक सिद्ध होती हैं। जितनी प्रतिभा मैंने भारतीय बच्चों में देखी है उतनी और कहीं नहीं देखी। मैं ऐसे कई भारतीय बच्चों को जानता हूँ जो अपने चौथे जन्मदिन से पहले ही दो भाषाओं में फर्राटे से लिखना, पढना, और बोलना जानते हैं। लेकिन स्कूल में दाखिले की उम्र छ: साल होने की वजह से उनको अपने महत्त्वपूर्ण दो साल ऐसे ही बेकार करने पडते हैं। यदि यह आयुसीमायें हटा दी जायें तो भारत के प्रतिभाशाली सुपुत्र दो साल पहले ही डाक्टर, इंजीनियर और मैनेजर बनकर देश को प्रगति के पथ पर फटाफट अग्रसर करने लगेंगे।

चुटकी लेते हुये, मैं कुछ ऐसे लोगों को भी जानता हूँ जो अपने बच्चों की उम्र जाली कागजों के द्वारा अधिक दिखलाते हैं, ताकि उन्हें स्कूल में समय से पहले दाखिला मिल सके। यह जालिम आयुसीमा इन लोगों को शिक्षा जैसी पवित्र चीज पाने के लिये फर्जी कागजों की अनैतिक बैसाखी का सहारा लेने पर मजबूर करती है।

सारांश में, मुझे लगता है कि शिक्षा का अधिकार सभी को है, और इसे किसी भी तरह की सीमा में बाँधना अनुचित है।

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